गणेश चतुर्थी का त्यौहार हमारे जीवन में खुशियों और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। खासकर जब आप गणेश चतुर्थी वास्तु के अनुसार अपने घर को सजाते हैं, तो यह न सिर्फ घर की शोभा बढ़ाता है बल्कि बिगड़े काम भी बनने लगते हैं। एक दोस्त की तरह मैं आपको बताना चाहूंगा कि गणपति बप्पा को अपने घर में सही दिशा और वास्तु नियमों के साथ स्थापित करना कितनी शांति और समृद्धि लेकर आता है। यह त्योहार भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जो हमारे लिए बुद्धि, सफलता और बाधाओं को दूर करने वाले देवता हैं। उनके आगमन का उत्सव हर घर में उल्लास और भक्ति का माहौल बनाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणेश चतुर्थी के दौरान वास्तु अनुसार घर सजाने के कुछ विशेष नियम होते हैं, जो आपके भाग्य में चार चांद लगा सकते हैं? यदि नहीं, तो यह जानना आपके लिए बेहद लाभकारी होगा। इस विशेष अवसर पर घर की सजावट में कुछ छोटे-छोटे बदलाव आपके कामों को सुगम बना सकते हैं और जीवन में खुशहाली ला सकते हैं। तो चलिए, इस पावन पर्व को और भी ज्यादा शुभ और सार्थक बनाने के लिए गणेश चतुर्थी वास्तु के कुछ जरूरी टिप्स सीखते हैं, ताकि बिगड़े काम बन सकें और घर में सुख-शांति बनी रहे।
Table of Contents
- गणेश चतुर्थी: कब और क्यों मनाते हैं यह पावन पर्व?
- वास्तु अनुसार घर सजाने के खास नियम
- घर की सजावट में इन वास्तु टिप्स को अपनाकर संवारें अपना भाग्य
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गणेश चतुर्थी: कब और क्यों मनाते हैं यह पावन पर्व?
हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को बड़े ही धूमधाम से गणेश चतुर्थी का पावन पर्व मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जो हिंदू धर्म के सबसे प्रिय देवताओं में से एक हैं। गणपति बप्पा को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य का देवता माना जाता है। इसी कारण, उनकी पूजा-अर्चना करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और कार्यों में सफलता मिलती है।
कब मनाते हैं गणेश चतुर्थी?
गणेश चतुर्थी का पावन पर्व हर साल भाद्रपद (भादों) माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह तिथि आमतौर पर अगस्त या सितंबर के महीने में पड़ती है। पौराणिक कथाओं और गणेश पुराण के अनुसार, इसी शुभ तिथि पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था, जिसके कारण इसे गणेश जयंती के नाम से भी जाना जाता है। यह उत्सव गणेश पक्ष के आरंभ का प्रतीक है, जो अनंत चतुर्दशी तक चलता है।
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क्यों मनाते हैं गणेश चतुर्थी?
गणेश चतुर्थी को मनाने के पीछे कई महत्वपूर्ण पौराणिक कथाएं और गहरी धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। सबसे प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती ने गणेश जी को यह वरदान दिया था कि किसी भी पूजा या अनुष्ठान में उनका सबसे पहले पूजन किया जाएगा। यही कारण है कि किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा से की जाती है, ताकि कार्य निर्विघ्न संपन्न हो सके। यह पर्व भगवान गणेश के ज्ञान, विवेक और समस्त सिद्धियों को प्रदान करने की क्षमता का भी प्रतीक है। भक्तजन अपने घरों में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर दस दिनों तक उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं, और अंत में अनंत चतुर्दशी के दिन विधिपूर्वक प्रतिमा का विसर्जन करते हैं।
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गणेश चतुर्थी का महत्व
इस पवित्र पर्व पर भक्तजन बड़ी श्रद्धा और भक्ति भाव से भगवान गणेश की आराधना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से की गई पूजा से गणपति बप्पा शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। यह त्योहार जीवन में नई शुरुआत करने, बुद्धि का विकास करने और आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने का संदेश देता है। लोग बड़े प्यार से अपने घरों में बप्पा का स्वागत करते हैं, उन्हें प्रिय मोदक का भोग लगाते हैं, और मंगलमय भजन-कीर्तन के साथ इस उत्सव को धूमधाम से मनाते हैं।
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वास्तु अनुसार घर सजाने के खास नियम
हम सभी अपने घर को खूबसूरत और आरामदायक बनाना चाहते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वास्तु शास्त्र के अनुसार घर को सजाने से आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ सकता है और सुख-समृद्धि आ सकती है? वास्तु शास्त्र हमें सिखाता है कि घर के हर हिस्से को कैसे व्यवस्थित किया जाए ताकि वहां रहने वाले लोगों के जीवन में खुशहाली बनी रहे। आइए, वास्तु के कुछ ऐसे ही खास नियमों को जानते हैं, जो न केवल आपके घर को सुंदर बनाएंगे, बल्कि अनजाने में हुए वास्तु दोषों को दूर करने में भी मदद करेंगे।
प्रवेश द्वार (Main Entrance)
आपके घर का मुख्य द्वार या प्रवेश द्वार सबसे महत्वपूर्ण होता है। इसे हमेशा स्वच्छ और आकर्षक बनाए रखना चाहिए। वास्तु के अनुसार, प्रवेश द्वार पर कभी भी गंदगी, कूड़ा-कचरा या जूते-चप्पल नहीं रखने चाहिए। एक सुंदर सीढ़ी, फूलों की बेल या ‘ओम’ या ‘श्री गणेश’ जैसे शुभ चिन्हों का चित्र लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है। प्रवेश द्वार के आसपास पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था करें, क्योंकि अंधेरा वास्तु दोष उत्पन्न कर सकता है। एक सुंदर लकड़ी का मुख्य द्वार घर के लिए विशेष रूप से शुभ होता है।
- प्रवेश द्वार को हमेशा साफ-सुथरा रखें।
- देहरी (चौखट) पर शुभ चिन्ह जरूर लगाएं।
- सुनिश्चित करें कि प्रवेश द्वार के आसपास पर्याप्त रोशनी हो।
- यहां जूते-चप्पल या किसी भी तरह का कबाड़ न रखें।
- लकड़ी का सुंदर मुख्य द्वार घर की शोभा बढ़ाता है और शुभ होता है।
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बैठक कक्ष (Living Room)
बैठक कक्ष वह स्थान है जहाँ हम अपने मेहमानों का स्वागत करते हैं और परिवार के साथ आराम के पल बिताते हैं। इसलिए, इसे वास्तु के अनुसार सजाना बहुत महत्वपूर्ण है। वास्तु के अनुसार, बैठक कक्ष उत्तर या पूर्व दिशा में होना सबसे अच्छा माना जाता है। अपने फर्नीचर को इस तरह से व्यवस्थित करें कि कमरे में घूमने-फिरने के लिए पर्याप्त जगह हो और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सुगम बना रहे। हल्के और सुखदायक रंगों का प्रयोग करें, जैसे कि पेस्टल शेड्स। भारी फर्नीचर को दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखना शुभ माना जाता है।
- बैठक कक्ष उत्तर या पूर्व दिशा में बनाने का प्रयास करें।
- फर्नीचर को इस तरह व्यवस्थित रखें कि ऊर्जा का प्रवाह बाधित न हो।
- कमरे में हल्के और सुखदायक रंगों का प्रयोग करें।
- भारी फर्नीचर को दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखें।
- कमरे में ताज़े फूल या हरे-भरे पौधे रखें।
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शयन कक्ष (Bedroom)
शयन कक्ष वह पवित्र स्थान है जहाँ हम दिन भर की थकान के बाद आराम करते हैं। इसलिए, इसे शांत और आरामदायक बनाना अत्यंत आवश्यक है। वास्तु के अनुसार, बिस्तर को कमरे के दक्षिण-पश्चिम कोने में रखना सबसे अच्छा माना जाता है। ध्यान रखें कि आपका सिरहाना दक्षिण दिशा की ओर न हो। कमरे में गहरे या उत्तेजक रंगों के बजाय हल्के, शांत और सुखदायक रंगों का प्रयोग करें। धातु या लोहे के भारी फर्नीचर से भी बचना चाहिए, क्योंकि ये ऊर्जा को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
- बिस्तर को कमरे के दक्षिण-पश्चिम कोने में रखें।
- अपना सिरहाना कभी भी दक्षिण दिशा में न करें।
- कमरे के लिए हल्के और शांत रंगों का चयन करें।
- ध्यान रखें कि शीशा बिस्तर के ठीक सामने न हो।
- कमरे में आध्यात्मिक या शांत भाव वाले चित्र लगाएं।
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रसोई घर (Kitchen)
रसोई घर घर का वह महत्वपूर्ण हिस्सा है जहाँ से हमें ऊर्जा और पोषण मिलता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, रसोई घर का सबसे शुभ स्थान आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) दिशा है। यदि यह संभव न हो, तो उत्तर-पश्चिम दिशा भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। रसोईघर में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यह भी महत्वपूर्ण है कि स्टोव (चूल्हा) को सिंक के पास न रखा जाए, क्योंकि यह ऊर्जा के प्रवाह को बाधित कर सकता है।
- रसोईघर को आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) में बनाने का प्रयास करें।
- रसोईघर को हमेशा साफ-सुथरा रखें।
- स्टोव और सिंक को एक-दूसरे के पास न रखें।
- यहां पर्याप्त रोशनी और हवा का संचार सुनिश्चित करें।
- रसोई में सकारात्मकता लाने के लिए हल्के और मन को शांति देने वाले रंगों का प्रयोग करें।
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इन सरल वास्तु नियमों का पालन करके, आप न केवल अपने घर को एक सुंदर और आकर्षक रूप दे सकते हैं, बल्कि अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, सुख और खुशहाली का भी अनुभव कर सकते हैं।
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घर की सजावट में इन वास्तु टिप्स को अपनाकर संवारें अपना भाग्य
वास्तु शास्त्र, जिसे हम ‘घर की सजावट में इन वास्तु टिप्स को अपनाकर संवारें अपना भाग्य’ के रूप में भी जानते हैं, यह हमारे रहने की जगह को सकारात्मक ऊर्जा से भरने का एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है। यह केवल बाहरी सुंदरता की बात नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि आपका घर शांति, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का केंद्र बने। वास्तु के अनुसार सही दिशा में रखी गई वस्तुएं, उचित रंग योजना और हवा का प्रवाह घर में सकारात्मकता का संचार कर सकता है।
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वास्तु के अनुसार घर की सजावट के मुख्य सिद्धांत
अपने घर को वास्तु के अनुसार सजाने के लिए कुछ सरल और प्रभावी उपाय अपनाए जा सकते हैं। ये उपाय न केवल आपके घर को सुंदर बनाते हैं, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा को भी आकर्षित करते हैं, जिससे घर में सुख-समृद्धि आती है।
मुख्य द्वार
घर का मुख्य द्वार सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इसे हमेशा स्वच्छ और अच्छी रोशनी से युक्त रखें। वास्तु के अनुसार, पूर्व, उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में मुख्य द्वार होना अत्यंत शुभ माना जाता है।
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बैठक कक्ष (Living Room)
बैठक कक्ष वह स्थान है जहाँ हम मेहमानों का स्वागत करते हैं। इसे उत्तर या पूर्व दिशा में बनाना सबसे अच्छा होता है। फर्नीचर की व्यवस्था ऐसी करें कि कमरे में खुलापन और सहजता का अनुभव हो। दीवारों के लिए हल्के और सुखदायक रंगों का चुनाव करें।
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शयन कक्ष (Bedroom)
शयन कक्ष में बिस्तर को दक्षिण या पश्चिम दिशा में रखें, और सिरहाना दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए। कमरे के लिए गहरे रंगों के बजाय हल्के और शांत रंगों का प्रयोग करें, जो विश्रामदायक माहौल बनाते हैं।
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रसोईघर (Kitchen)
वास्तु के अनुसार, रसोईघर को आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) में बनाना सबसे उत्तम होता है। खाना बनाते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। रसोईघर को हमेशा साफ-सुथरा और व्यवस्थित रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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पूजा घर (Prayer Room)
वास्तु शास्त्र के अनुसार, पूजा घर को ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में बनाना सबसे शुभ होता है। भगवान की मूर्तियों को इस प्रकार रखें कि उन पर सीधी धूप न पड़े, और पूजा करते समय आपका मुख उत्तर या पूर्व दिशा की ओर हो।
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पानी की दिशा
घर में पानी की व्यवस्था, जैसे नल या बोरवेल, उत्तर-पूर्व दिशा में होनी चाहिए। यह दिशा धन और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
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रंगों का चुनाव
घर की सजावट में रंगों का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हल्का नीला, हरा, पीला और सफेद रंग सकारात्मकता और शांति का अनुभव कराते हैं। वहीं, लाल और काले जैसे गहरे रंगों का प्रयोग सोच-समझकर और सावधानी से करना चाहिए।
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इन सरल वास्तु युक्तियों को अपनाकर आप अपने घर को न केवल एक सुंदर और आकर्षक स्थान बना सकते हैं, बल्कि अपने जीवन में सौभाग्य और सकारात्मक ऊर्जा को भी आमंत्रित कर सकते हैं। वास्तु का पालन करके आप अपने घर में एक सामंजस्यपूर्ण और ऊर्जावान वातावरण का निर्माण कर सकते हैं।
Source: ज्योतिष – Amar Ujala
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हमें खुशी है कि आपने गणेश चतुर्थी पर वास्तु के अनुसार घर सजाने और बिगड़े काम बनाने के बारे में जाना। उम्मीद है, ये सुझाव आपके लिए मददगार साबित होंगे और बप्पा की कृपा से आपके जीवन में खुशियां और सफलता आए!
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