पितृ कर्म का विषय हमारी संस्कृति और विश्वासों में बेहद खास स्थान रखता है, खासकर जब बात हो हरिद्वार के गुप्त घाट-मंदिर की। हरिद्वार, जो गंगा के किनारे बसा एक पवित्र शहर है, पितृपक्ष में श्रद्धालुओं के लिए अद्भुत अनुष्ठान स्थल बन जाता है। यह वह जगह है जहां पितरों को शांति देने के लिए अस्थि प्रवाह घाट और कई अन्य मंदिरों में पितृ कर्म किए जाते हैं। अगर आपने कभी सोच रखा हो कि पितृ कर्म का सही स्थान और तरीका क्या होना चाहिए, तो हरिद्वार के ये राज़ आपके लिए एक सुनहरा अवसर लेकर आते हैं। यहां के गुप्त घाट-मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि यह हमारे पूर्वजों की आत्मा को शांति देने में अमूल्य भूमिका निभाते हैं। मान्यता है कि हरिद्वार में किए गए पितृ कर्म से हमारे पितरों को मोक्ष मिलता है और वे हमें जीवन में खुशहाली और आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष का समय, जो कि आश्विन मास में आता है, इस काम के लिए सबसे उचित माना जाता है। तो चलिए, जानते हैं हरिद्वार के उन खास घाटों और मंदिरों के बारे में जो पितृ कर्म के लिए अद्भुत हैं और क्यों हरिद्वार को पितरों की मुक्ति का प्रमुख केंद्र माना जाता है।
Table of Contents
- पितृपक्ष में हरिद्वार का महत्व: शास्त्रों में वर्णित
- हरिद्वार के प्रमुख पितृ कर्म स्थल: अस्थि प्रवाह घाट और उसका महत्व
- अन्य महत्वपूर्ण घाट और मंदिर: कुशावर्त, नारायणी शिला, राजा दक्ष और शीतला माता घाट
- हरिद्वार में पितृ कार्य: परंपराएं और विशेष लाभ
पितृपक्ष में हरिद्वार का महत्व: शास्त्रों में वर्णित
सनातन धर्म में अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान दिखाने के लिए पितृपक्ष का अत्यंत महत्त्व है। इस विशेष अवधि में वंशज अपने पितरों की याद में श्राद्ध, तर्पण जैसे पवित्र कर्मकांड करते हैं। ऐसा विश्वास है कि इन अनुष्ठानों से पितर प्रसन्न होकर अपने वंशजों पर सुख, समृद्धि और आशीर्वाद की वर्षा करते हैं। खासतौर पर आश्विन मास के पितृपक्ष के दौरान, यदि हरिद्वार के पवित्र गंगा तट पर धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किए जाएं, तो नाराज़ पितरों की भी प्रसन्नता हो जाती है। हरिद्वार, जो कि सात पवित्र नगरों में गिना जाता है, पितरों की मुक्ति के लिए अत्यंत शुभ स्थान माना गया है। यहाँ किए जाने वाले श्राद्ध कर्म अत्यंत फलदायी होते हैं और गंगा के पवित्र जल में किए गए तर्पण से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
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हरिद्वार में पितृ कार्य के लिए महत्वपूर्ण स्थल
पितृपक्ष के दौरान हरिद्वार में पितृ कर्मकांडों के लिए कई पवित्र स्थल शास्त्रों में उल्लेखित हैं। इन स्थानों पर किए गए अनुष्ठान विशेष रूप से पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करने में सहायक माने जाते हैं।
- अस्थि प्रवाह घाट: यह घाट हर की पैड़ी के निकट स्थित है। देश-विदेश से श्रद्धालु अपने पितरों की अस्थियों को यहाँ गंगा में विसर्जित करने आते हैं। माना जाता है कि अस्थि प्रवाह घाट पर पिंडदान, तर्पण, और जलांजलि देने से पितरों की शांति होती है और वे वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
- कुशावर्त घाट: यह हरिद्वार का प्राचीन और पवित्र घाट है जहाँ पितरों के लिए तर्पण जैसे कर्मकांडों का विशेष महत्व है।
- नारायणी शिला मंदिर: यह मंदिर पितृ कर्मकांडों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। यहाँ श्राद्ध विधि संपन्न करने से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है।
- राजा दक्ष घाट और शीतला माता घाट: इन घाटों पर भी पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने का विशेष लाभ होता है।
इन पवित्र घाटों और मंदिरों पर किए गए पितृ कर्म, विशेष रूप से अस्थि प्रवाह घाट पर अस्थियों का विसर्जन, पितरों के मोक्ष और शांति के लिए अत्यंत फलदायी होते हैं। हरिद्वार की गंगा में तर्पण और अन्य श्राद्ध कर्म करने से पितरों की आत्मा संतुष्ट होती है और वे अपने वंशजों को सुकून, आशीर्वाद और समृद्धि प्रदान करते हैं। यह पवित्र परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी लाखों श्रद्धालु हरिद्वार में इसका पालन करते हैं।
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हरिद्वार के प्रमुख पितृ कर्म स्थल: अस्थि प्रवाह घाट और उसका महत्व
हिंदू धर्म में पितरों का स्थान अत्यंत पवित्र एवं महत्वपूर्ण माना गया है। उनकी आत्मा की शांति के लिए विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान, विशेषकर पितृपक्ष के दौरान किए जाते हैं। ऐसा विश्वास है कि यदि आश्विन मास में पितृपक्ष के समय हरिद्वार के गंगा तट पर श्राद्ध कर्म और पितृ तर्पण विधियाँ सम्पन्न की जाएं, तो पितृदेव प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है। हरिद्वार पितृ कर्म के लिए एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है, जहाँ अस्थि प्रवाह घाट, कुशावर्त घाट, नारायणी शिला मंदिर, राजा दक्ष घाट तथा शीतला माता घाट जैसे पवित्र स्थलों पर ये अनुष्ठान श्रद्धा भाव से संपन्न होते हैं। इन घाटों पर पिंडदान और तर्पण करने से अद्भुत पुण्य की प्राप्ति होती है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
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अस्थि प्रवाह घाट: एक पवित्र संगम
हरिद्वार में हर की पैड़ी के निकट स्थित अस्थि प्रवाह घाट पितृ कर्मों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। यहाँ देश के विभिन्न कोनों से श्रद्धालु अपने पूर्वजों की अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित करने के लिए आते हैं। यह घाट अस्थि विसर्जन के साथ-साथ पिंडदान, तर्पण और तिलांजलि जैसे अनुष्ठानों के लिए भी प्रसिद्ध है। धार्मिक मान्यता है कि इस पवित्र घाट पर किए गए कर्म पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष प्रदान करते हैं और उनकी संतुष्टि का कारण बनते हैं। गंगा की पवित्र धारा और घाट का शांत वातावरण इन धार्मिक कर्मों को और प्रभावशाली बनाता है।
- स्थान: हर की पैड़ी के पास, हरिद्वार।
- महत्व: पितरों की अस्थियों का विसर्जन, पिंडदान व तर्पण के लिए प्रमुख स्थान।
- मान्यता: यहां किए गए अनुष्ठानों से पितरों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है।
- आकर्षण: भारत के विभिन्न भागों से श्रद्धालु इस घाट पर अपने पितरों के अंतिम संस्कार संबंधित धार्मिक कार्य संपन्न कराने आते हैं।
यहाँ ऑनलाइन पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष का समय पितरों को स्मरण करने तथा उनकी आत्मा की शांति के लिए सर्वोत्तम अवसर माना जाता है। इसलिए हरिद्वार के अस्थि प्रवाह घाट पर पितृ कर्म सम्पन्न करना अत्यंत फलदायी होता है। यह स्थल श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव भी प्रदान करता है, जहाँ गंगा नदी की पावन धारा में अस्थियों का प्रवाह कर परंपराओं का पालन करते हुए पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त की जाती है।
Source: Indian Express – Religion News
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अन्य महत्वपूर्ण घाट और मंदिर: कुशावर्त, नारायणी शिला, राजा दक्ष और शीतला माता घाट
हरिद्वार, जिसे देवभूमि के तौर पर जाना जाता है, केवल प्रसिद्ध हर की पैड़ी ही नहीं बल्कि अनेक ऐसे महत्वपूर्ण घाट और मंदिरों के लिए भी विख्यात है, जहाँ भक्तगण अपने पितरों की शांति और पूर्वजों के आशीर्वाद के लिए विशेष धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, आश्विन मास के पितृपक्ष में हरिद्वार के गंगा तट पर किए जाने वाले कर्मकांड नाराज पितरों को भी खुश कर देते हैं। शास्त्रों में पितृ कार्यों के लिए हरिद्वार के कई पवित्र स्थानों का उल्लेख मिलता है, जिनमें अस्थि प्रवाह घाट, कुशावर्त घाट, प्राचीन नारायणी शिला मंदिर, राजा दक्ष घाट और शीतला माता घाट प्रमुख हैं। इन पवित्र स्थलों पर किए जाने वाले श्राद्ध एवं तर्पण जैसे कर्मकांडों से पितरों को विशेष शांति प्राप्त होती है और श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक लाभ मिलता है।
अस्थि प्रवाह घाट: पवित्र संगम स्थल
हरिद्वार में पितरों की अस्थियों को प्रवाहित करने का प्रमुख स्थल है अस्थि प्रवाह घाट, जो विशेष रूप से हर की पैड़ी के समीप स्थित है। देश के विभिन्न हिस्सों से यहाँ श्रद्धालु अपने दिवंगत परिजनों की अस्थियों को गंगा नदी में विसर्जित करने के लिए आते हैं। इस पवित्र स्थान पर पिंडदान, तर्पण, जलांजलि और तिलांजलि जैसे धार्मिक अनुष्ठान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होते हैं। अस्थि प्रवाह घाट की ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक महत्ता इसे हरिद्वार के अन्य घाटों से अलग बनाती है और श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
Source: Indian Express – Religion News
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कुशावर्त घाट: पुराणों में वर्णित महत्व
हरिद्वार के धार्मिक स्थलों में कुशावर्त घाट का भी अत्यंत महत्व है, जहाँ विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं। कुंभ मेले के दौरान यह घाट और भी ज्यादा श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। माना जाता है कि यह घाट भगवान विष्णु से जुड़ा है और यहाँ स्नान करने मात्र से व्यक्ति को पवित्रता और पुण्य की प्राप्ति होती है। पितृ पक्ष में कुशावर्त घाट पर श्राद्ध कर्म करने का विधान भी स्थापित है, जिससे पितरों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है। इस घाट की धार्मिक महत्ता हरिद्वार की संस्कृति में गहरी छाप छोड़ती है।
Source: Indian Express – Religion News
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नारायणी शिला मंदिर: पितरों के उद्धार का स्थान
प्राचीन नारायणी शिला मंदिर, जो हरिद्वार में स्थित है, पितृ कर्मों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। यह मंदिर खासतौर से उन आत्माओं के लिए समर्पित है जिनके कोई वारिस नहीं होते या जिन्होंने सही तरीके से अंतिम संस्कार नहीं पाया है। यहां शिला पर पिंडदान करने की मान्यता है कि वे पितर जिन्हें उनके संतान द्वारा श्राद्ध नहीं मिलता, उन्हें भी मुक्ति और शांति प्रदान होती है। नारायणी शिला मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक सम्मान और पितरों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का पवित्र केंद्र है।
Source: Indian Express – Religion News
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राजा दक्ष घाट और शीतला माता घाट: श्रद्धा और विश्वास के केंद्र
हरिद्वार में राजा दक्ष घाट और शीतला माता घाट भी वे पवित्र स्थान हैं जहाँ पितृ कर्मों का विधिपूर्वक संपादन होता है। राजा दक्ष घाट का नाम भगवान शिव के ससुर, राजा दक्ष के नाम पर रखा गया है। यहाँ श्रद्धालु श्राद्ध और तर्पण जैसे अनुष्ठान करते हैं ताकि अपने पूर्वजों को सम्मान और आशीर्वाद प्राप्त हो। शीतला माता घाट पर भी श्रद्धालु अपने पितरों को जल अर्पण एवं तर्पण करते हैं। ये घाट अपनी धार्मिक महत्ता के कारण पितृ पक्ष में विशेष रूप से श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण के केंद्र होते हैं, जहाँ वे पूर्वजों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर पवित्र आशीर्वाद पाते हैं।
Source: Indian Express – Religion News
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हरिद्वार में पितृ कार्य: परंपराएं और विशेष लाभ
हिंदू धर्म में पितरों का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि पूर्वजों का सम्मान और कृतज्ञता हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं। पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध कर्म, तर्पण और अन्य धार्मिक अनुष्ठान कुशलता से निभाए जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुछ विशिष्ट स्थान और समय पर पितृ कर्म करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। ऐसी ही एक पवित्र जगह है हरिद्वार, जो अपनी पवित्र गंगा नदी और आध्यात्मिक माहौल के कारण अत्यधिक पूजनीय है। विशेष रूप से आश्विन मास के पितृ पक्ष में हरिद्वार के गंगा तट पर किए गए अनुष्ठान पितरों को प्रसन्न करते हैं और उनके आशीर्वाद से वंशजों के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
Source: Drik Panchang (Online Almanac)
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हरिद्वार में पितृ कार्य के लिए प्रमुख स्थान
धार्मिक शास्त्रों में हरिद्वार के कई ऐसे पवित्र स्थल वर्णित हैं, जहां पितृ कर्म करने का विशेष महत्व है। ये स्थान पितरों के प्रति कृतज्ञता दर्शाने और श्राद्ध अनुष्ठानों के लिए अत्यंत उपयुक्त माने जाते हैं। हरिद्वार के प्रमुख घाट और मंदिरों में किए गए अनुष्ठान पूर्वजों को मोक्ष और शांति प्रदान करने वाली ऊर्जा से युक्त होते हैं।
- अस्थि प्रवाह घाट: हर की पैड़ी के समीप स्थित यह घाट पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन करने हेतु अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां देशभर से श्रद्धालु अपने पूर्वजों के अस्थि विसर्जन, पिंडदान, तर्पण और अन्य धार्मिक कर्मकांड करते हैं। यह स्थल पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष प्रदान करने में सहायक होता है।
- कुशावर्त घाट: हरिद्वार के इस घाट पर स्नान और तर्पण करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और आध्यात्मिक शांति मिलती है।
- प्राचीन नारायणी शिला मंदिर: इस मंदिर में श्राद्ध कर्म का अनुष्ठान विशेष विधि से किया जाता है। यहाँ पिंड दान करने से पितरों की आत्मा को शांति एवं संतोष प्राप्त होता है।
- राजा दक्ष घाट और शीतला माता घाट: ये घाट भी पितृ कार्यों के लिए महत्वपूर्ण स्थल हैं, जहां किए गए अनुष्ठान से पुण्य लाभ होता है और पितृ कृपा प्राप्त होती है।
Source: Drik Panchang (Online Almanac)
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विशेष लाभ और मान्यताएं
हरिद्वार की पवित्रता और गंगा के पावन तट पर पितृ कर्म करने के अनेक आध्यात्मिक लाभ हैं। माना जाता है कि इस पवित्र स्थल पर किए गए अनुष्ठान नाराज पितरों को भी प्रसन्न करने वाले होते हैं। ऑनलाइन पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान तर्पण और श्राद्ध कर्म अत्यंत पुण्यदायक होते हैं, जो पूर्वजों को सद्गति प्रदान करते हैं। अस्थि प्रवाह घाट पर अस्थि विसर्जन के साथ पिंडदान, जलांजलि और तिलांजलि की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि ये कर्म पूर्वजों की आत्मा को तृप्त करते हैं और मोक्ष की प्राप्ति सुनिश्चित करते हैं। कुशावर्त घाट पर स्नान करके तर्पण करने से सभी तीर्थों के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। प्राचीन नारायणी शिला मंदिर में किए गए अनुष्ठानों से पितर अत्यंत संतुष्ट होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे वंशजों को सुख-समृद्धि तथा समृद्ध जीवन का आशीर्वाद देते हैं।
Source: Drik Panchang (Online Almanac)
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हमें उम्मीद है कि हरिद्वार के इन गुप्त घाट-मंदिरों के बारे में जानकर आपको अच्छा लगा होगा। पितृ कर्म के लिए ये स्थान विशेष महत्व रखते हैं। अगर आप भी अपने पूर्वजों को याद कर रहे हैं, तो हरिद्वार के इन पवित्र स्थलों पर जाकर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकते हैं। यह जानकारी आपको उपयोगी लगी होगी।
Sources
[Source 1] – पितृ पक्ष 2023: जानें पितृ पक्ष की शुभ तिथि और महत्व
[Source 2] – Indian Express – Religion News
[Source 3] – ऑनलाइन पंचांग
[Source 4] – Drik Panchang (Online Almanac)
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