हरिद्वार के ये 5 घाट-मंदिर पितृ कर्म के लिए हैं खास, जानें महत्व

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हरिद्वार के घाट मंदिर पितृ कर्म के लिए खास महत्व रखते हैं और पितृ कर्म हरिद्वार में करने का अपना ही एक अलग पुण्यसूचक अनुभव है। खासकर पितृपक्ष के दौरान, जब हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद के लिए अनुष्ठान करते हैं, तब हरिद्वार की पवित्रता और भी बढ़ जाती है। हरिद्वार पितृ कर्म के लिए एक ऐसा स्थान है जहां गंगा नदी का पवित्र जल और घाटों की माहात्म्यता मिलकर हमारे पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान को गहरा करती है। अस्थि प्रवाह घाट, हर की पैड़ी, नारायणी शिला मंदिर और राजा दक्ष घाट जैसे घाट-मंदिर पितृ कर्म के अनुष्ठान के लिए बहुत ही खास माने जाते हैं। धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों में भी इन स्थानों की महत्ता का विस्तार से उल्लेख है। यदि आप भी अपने पितरों की शांति और पुण्य प्राप्ति के लिए हरिद्वार आने का विचार कर रहे हैं, तो यह जानना जरूरी है कि ये पांच प्रमुख घाट और मंदिर पितृ कर्म के लिए क्यों खास हैं। यह न केवल पारंपरिक अनुष्ठानों को सही ढंग से करने में मदद करते हैं बल्कि आपके मन को भी एक अनोखा आंतरिक संतोष देते हैं। तो चलिए, इनके महत्व को समझते हैं और जानते हैं कि हरिद्वार पितृपक्ष के दौरान क्यों एक ऐसा तीर्थस्थान माना जाता है जो आपके पूर्वजों की आत्मा को शांति और आपको सुख-शांति प्रदान करता है।

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पितृपक्ष में हरिद्वार का महत्व: शास्त्रों का ज्ञान

हिंदू धर्म में पितृपक्ष एक अत्यंत पवित्र काल माना जाता है, जब हम अपने पूर्वजों को श्रद्धा और स्मरण से याद करते हैं। इस दौरान पूर्वजों की आत्मा की शांति एवं आशीर्वाद के लिए विविध धार्मिक अनुष्ठान संपादित किए जाते हैं। मान्यता है कि यदि पितृपक्ष के समय हरिद्वार के गंगा तट पर पूजा-अर्चना की जाए, तो नाराज पितृ भी प्रसन्न हो जाते हैं और अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। शास्त्रों में हरिद्वार को पितृ कर्म करने के लिए सर्वोपरि पवित्र स्थल माना गया है, जहाँ श्राद्ध और तर्पण जैसे अनुष्ठान सम्पन्न करने से पूर्वजों को विशेष लाभ मिलता है।

Source: NDTV – Religion in India

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हरिद्वार में पितृ कार्य के लिए विशेष स्थान

धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों में हरिद्वार के कई ऐसे स्थानों का उल्लेख मिलता है जो पितृ कर्म और श्राद्ध अनुष्ठानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन घाटों और मंदिरों पर किये गए अनुष्ठान पूर्वजों को सीधे लाभ पहुंचाते हैं और उनकी आत्मा की शांति में सहायक होते हैं। पितृपक्ष के दौरान इनमें से निम्नलिखित स्थानों पर श्रद्धापूर्वक कर्म करने का विशेष महत्व है:

  • अस्थि प्रवाह घाट: यह घाट हर की पैड़ी के निकट स्थित है, जहां देश-विदेश से भक्त यहाँ अपने पितरों की अस्थियाँ प्रवाहित करते हैं। यहाँ पिंडदान, तर्पण, जलांजलि और तिलांजलि के अनुष्ठान विशेष फलदायक माने जाते हैं।
  • कुशावर्त घाट: यह प्राचीन घाट हरिद्वार के पुण्य स्थलों में से एक है जहाँ पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं।
  • नारायणी शिला मंदिर: यह मंदिर पितरों की मुक्ति और शांति के लिए श्रद्धालुओं द्वारा विशेष रूप से पूजा जाता है।
  • राजा दक्ष घाट और शीतला माता घाट: इन घाटों पर भी पितृ कर्मों का विधान होता है, जहाँ भक्त पुरखों की मुक्ति हेतु अनुष्ठान संपन्न करते हैं।

इन स्थानों पर की गई पूजा-अर्चना से न केवल पूर्वजों को शांति मिलती है, बल्कि वंशजों के जीवन में भी सुख-शांति और समृद्धि आती है। हरिद्वार में पितृपक्ष के दौरान इन पवित्र घाटों और मंदिरों में जाकर धार्मिक क्रियाएँ करना अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करने का सर्वोत्तम तरीका है।

Source: NDTV – Religion in India

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हरिद्वार के प्रमुख पितृ कर्म स्थल: अस्थि प्रवाह घाट और अन्य

हिंदू धर्म में पितरों का विशेष स्थान होता है और उनकी आत्मा की शांति के लिए किए जाने वाले पितृ कर्मों का अत्यंत महत्व है। विशेषतः आश्विन मास में मनाए जाने वाले पितृपक्ष के दौरान यदि हरिद्वार जैसी पवित्र नगरी में गंगा नदी के किनारे श्राद्ध और तर्पण जैसे अनुष्ठान सम्पन्न किए जाएं, तो माना जाता है कि पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है। हरिद्वार, जो भगवान विष्णु के चरणों के समान पवित्र माना जाता है, पितृमोक्ष के लिए एक अत्यंत शुभ स्थान है। यहाँ कई घाट एवं धार्मिक स्थल हैं जहाँ पितृकर्म विधिपूर्वक किए जाते हैं।

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अस्थि प्रवाह घाट: पितरों की अस्थियों के विसर्जन का पावन स्थल

अस्थि प्रवाह घाट हरिद्वार में पितृ कर्म करने वाले भक्तों के लिए एक प्रमुख और पवित्र स्थान है। यह घाट प्रसिद्ध हर की पैड़ी के समीप स्थित है, जिसकी वजह से यहां पहुंचना बहुत सुविधाजनक होता है। भारत के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु अपने स्वजन की अस्थियां लेकर यहाँ आते हैं, ताकि उन्हें गंगा नदी में विधिपूर्वक विसर्जित कर सकें। ऐसा विश्वास है कि इस घाट पर अस्थि विसर्जन से पितरों को आत्मिक शांति और सद्गति का वरदान मिलता है। यहाँ पिंडदान, तर्पण, जलांजलि तथा तिलांजलि जैसे धार्मिक कर्मकांड विधि-विधान के अनुसार संपन्न किए जाते हैं। गंगा नदी की दिव्यता और घाट का ऐतिहासिक महत्व इसे पितरों की तृप्ति के लिए अत्यंत उपयुक्त बनाता है।

Source: Indian Express – Religion News

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अन्य महत्वपूर्ण पितृ कर्म स्थल

अस्थि प्रवाह घाट के अलावा, हरिद्वार में कई अन्य घाट और मंदिर भी मौजूद हैं जहाँ पितृ कर्म करने का जीवंत धार्मिक महत्व है। ये स्थल विभिन्न पौराणिक कथाओं से जुड़े होने के कारण अत्यधिक पवित्र माने जाते हैं और यहाँ श्राद्ध एवं तर्पण जैसे अनुष्ठान विशेष विधानों से किए जाते हैं। इन स्थानों की पवित्रता और धार्मिक अत्याचारों को निभाने से पितरों की आत्मा को मोक्ष और शांति मिलती है।

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कुशावर्त घाट: श्राद्ध कर्म के लिए उपयुक्त

कुशावर्त घाट भी हरिद्वार के प्रमुख पवित्र घाटों में से एक है, जहाँ पितृपक्ष के दौरान बड़े पैमाने पर श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। गंगा नदी के तट पर स्थित यह घाट श्रद्धालुओं के लिए अनुष्ठान सम्पन्न करने हेतु पूर्णतः उपयुक्त वातावरण प्रदान करता है। यहाँ श्राद्ध अनुष्ठान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

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नारायणी शिला मंदिर: पितरों के मोक्ष हेतु

हरिद्वार में स्थित नारायणी शिला मंदिर एक प्राचीन स्थल है जहाँ पितृ मोक्ष के लिए पूजा-अर्चना की जाती है। इस मंदिर में श्रद्धालु अपने पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं, जिससे उनकी आत्मा को मुक्ति और शांति मिलती है। यहाँ की धार्मिक गरिमा और आध्यात्मिकता इसे पितृ कर्मों के लिए अत्यंत उपयुक्त बनाती है।

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राजा दक्ष घाट और शीतला माता घाट

अंततः, राजा दक्ष घाट और शीतला माता घाट भी पितृ कर्मों के लिए अत्यंत उपयुक्त स्थान माने जाते हैं। गंगा के किनारे स्थित ये घाट पितरों का स्मरण करने तथा जल अर्पित करने के लिए आदर्श स्थान हैं। पितृपक्ष के दौरान इन घाटों पर विशेष धार्मिक गतिविधियाँ और आस्था का सक्रिय प्रवाह रहता है, जहाँ लोग अपने पूर्वजों को याद कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

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अस्थि प्रवाह घाट: हर की पैड़ी पर पितृ अनुष्ठानों का विशेष स्थान

हिंदू धर्म में पूर्वजों का सम्मान और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म और तर्पण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। विशेषकर आश्विन मास में आने वाले पितृपक्ष के दौरान, यदि हरिद्वार के पवित्र गंगा तट पर, खासकर हर की पैड़ी के समीप किसी पवित्र घाट पर धार्मिक अनुष्ठान किए जाएं, तो इससे पूर्वजों की प्रसन्नता और आत्मा की शांति सुनिश्चित होती है। हरिद्वार में पितृ कार्यों के लिए कई ऐतिहासिक घाट हैं, जिनमें अस्थि प्रवाह घाट, कुशावर्त घाट, प्राचीन नारायणी शिला मंदिर, राजा दक्ष घाट, और शीतला माता घाट प्रमुख हैं। इन घाटों पर किए गए पितृ अनुष्ठान विशेष फलदायी माने जाते हैं, जो परिवार और पितरों दोनों के लिए लाभदायक होते हैं।

Source: इश्वरवाणी

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अस्थि प्रवाह घाट, जो कि हर की पैड़ी के बिलकुल नजदीक स्थित है, पितृ कर्मों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यहां पूरे देश से लोग अपने पूर्वजों की अस्थियां गंगा नदी में विसर्जित करने के लिए आते हैं। यह घाट पितरों के अंतिम संस्कार से जुड़ी अनुष्ठानों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहां आकर श्रद्धालु अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान, तर्पण, जलांजलि, और तिलांजलि जैसे धार्मिक कर्म करते हैं। इस पवित्र स्थल पर किए गए ये कर्म गहरे विश्वास के अनुसार पितृओं को मोक्ष प्रदान करते हैं और परिवार को उनके आशीर्वाद से संपन्न बनाते हैं। सदियों से, अस्थि प्रवाह घाट गंगा नदी की पवित्र धारा में पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन कर उन्हें अंतिम विदाई देने की धार्मिक परंपराओं का केंद्र बना हुआ है।

Source: इश्वरवाणी

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अन्य महत्वपूर्ण घाट और मंदिर: राजा दक्ष घाट, नारायणी शिला और शीतला माता घाट

हरिद्वार, जो पवित्र गंगा नदी के किनारे बसा है, केवल एक तीर्थस्थल ही नहीं, बल्कि पितरों की शांति के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में विशेष रूप से आश्विन मास के पितृपक्ष में यहां किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान नाराज पितरों को प्रसन्न कर देते हैं। पितृकर्म के लिए हरिद्वार में कई पवित्र स्थल मौजूद हैं जहाँ पूजा-पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है। इनमें अस्थि प्रवाह घाट, कुशावर्त घाट, प्राचीन नारायणी शिला मंदिर, राजा दक्ष घाट और शीतला माता घाट प्रमुख हैं। ये स्थान अपनी आध्यात्मिक महत्ता और पौराणिक कथाओं के कारण श्रद्धालुओं के दिलों में गहरी आस्था रखते हैं।

अस्थि प्रवाह घाट, जो हर की पैड़ी के नजदीक स्थित है, उन श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र स्थल है जो अपने पितरों की अस्थियों का गंगा नदी में विसर्जन करने आते हैं। देश भर से भक्त यहां पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहुंचते हैं और विधिवत पिंडदान, तर्पण, जलांजलि तथा तिलांजलि जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक कर्म करते हैं। यह प्राचीन घाट गंगा के पावन तट पर स्थित है, जहां आकर भक्त अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य के प्रदर्शन के साथ उनकी शांति की कामना करते हैं।

Source: NDTV – Religion in India

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राजा दक्ष घाट का धार्मिक और पौराणिक महत्व अनूठा है, यह भगवान शिव और देवी सती की कथा से जुड़ा हुआ एक प्रमुख स्थल है। यह घाट न सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए, बल्कि इसके ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व के कारण भी श्रद्धालुओं के बीच खास स्थान रखता है। वहीं, नारायणी शिला मंदिर में जाकर लोग अपने पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र स्थान पर किए गए कर्मकांड पितरों को प्रसन्न करके उन्हें मोक्ष प्रदान करते हैं।

इसी प्रकार, शीतला माता घाट भी उन विशेष स्थलों में से है जहां पितृ दोष निवारण और अन्य धार्मिक कर्मकांड किए जाते हैं। पितृपक्ष के दौरान इन घाटों और मंदिरों पर भारी भीड़ रहती है क्योंकि श्रद्धालु अपने पूर्वजों के आशीर्वाद एवं उनकी आत्मा की शांति के लिए यहां पहुंचते हैं। ये स्थल पितृकर्म की रीति-रिवाजों और आध्यात्मिक श्रद्धा की मुख्य अभिव्यक्ति हैं।

Source: NDTV – Religion in India

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हमें उम्मीद है कि हरिद्वार के इन घाट-मंदिरों में पितृ कर्म के महत्व के बारे में जानकर आपको अच्छा लगा होगा। ये स्थान पूर्वजों के प्रति सम्मान व्यक्त करने और उन्हें शांति प्रदान करने के लिए बहुत खास हैं। हरिद्वार पितृ कर्म के लिए वाकई एक पवित्र स्थल है।

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