सितंबर के Amazing पर्व: जितिया, पितृपक्ष, एकादशी, जानें ग्रहण तिथियां

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सितंबर पर्व की बात करें तो यह महीना अपने आप में कई धर्मिक और सांस्कृतिक त्योहारों का समृद्ध संगम लेकर आता है। जितिया, पितृपक्ष, एकादशी जैसे महत्वपूर्ण पर्व इस महीने विशेष रूप से मनाए जाते हैं, जो हमारी परंपराओं और आस्था को जीवनदान देते हैं। इन पर्वों का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक रूप से भी गहरा होता है। सितंबर के ये पर्व हमें न केवल अपने पूर्वजों की याद दिलाते हैं, बल्कि नई ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार भी करते हैं। साथ ही, इस महीने ग्रहण तिथियां भी आती हैं, जो हमारे जीवन और प्रकृति पर अलग-अलग असर डालती हैं। इसलिए सितंबर का महीना उत्सव, व्रत, और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए अत्यंत अनुकूल माना जाता है। चाहे वह पितृपक्ष में अपनों को श्रद्धांजलि अर्पित करना हो या एकादशी के व्रत से आध्यात्मिक शांति पाना, हर पर्व का अपना एक खास संदेश है। इसी वजह से हम सभी को सितंबर के ये पर्व और ग्रहण तिथियां जानना और समझना उतना ही जरूरी है। आइए, इस रंगीन और आध्यात्मिक महीने की यात्रा को और करीब से जानें और महसूस करें।

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सितंबर के प्रमुख पर्व: पितृपक्ष से एकादशी तक, जानें तिथियां

सितंबर का महीना धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस अवधि में अनेक बड़े पर्व और शुभ तिथियां आती हैं, जो भक्त लोगों के लिए विशेष महत्व रखती हैं। देवघर के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित नंद किशोर मुद्गल के अनुसार, इस सितंबर माह में ग्रहों की स्थिति असाधारण रूप से अनुकूल रहेगी, जिससे दो बड़े ग्रहणों की संभावना भी बन रही है। महीने की शुरुआत में 3 सितंबर को परिवर्तनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया जाएगा, जो अत्यंत फलदायी माना जाता है। इसके अगले दिन, 4 सितंबर को वामन जयंती का पावन पर्व मनाया जाएगा, जो भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ा है।

सितंबर की 5 तारीख को भाद्रपद मास का अंतिम प्रदोष व्रत पड़ रहा है, जो बेहद खास और महत्वपूर्‍ण होता है। इसी दिन केरल में बड़े उत्साह के साथ ओणम पर्व मनाया जाएगा। यह महीना पितृपक्ष की शुरुआत से लेकर नवरात्रि की बेला तक फैला होता है, जो इसे और भी धार्मिक दृष्टि से खास बनाता है। पितृपक्ष में हम अपने पूर्वजों की याद करते हुए उनकी आत्मा की शांति और आशीर्वाद के लिए श्रद्धा प्रदर्शन करते हैं। इसके अलावा, क्षेत्रीय पर्व जैसे जितिया और कर्मा भी इस महीने में मनाए जाते हैं, जो अपनी गहरी सांस्कृतिक परंपराओं के लिए विख्यात हैं।

ज्योतिष के अनुसार, इस बार सितंबर में दो बड़े ग्रहण लगने की संभावना है। पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण और अमावस्या को सूर्य ग्रहण का प्रभाव देखने को मिल सकता है। विशेष रूप से, चंद्र ग्रहण का प्रभाव हमारे देश भारत पर भी गहराई से महसूस किया जाएगा, जो ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होगा। भक्तजनों के लिए आवश्यक है कि वे इन ग्रहणों और अन्य प्रमुख त्योहारों की तिथियों की जानकारी पूर्व में प्राप्त कर सही समय पर पूजा-अर्चना, व्रत और अन्य धार्मिक कृत्य करें। यह महीना धार्मिक गतिविधियों के लिए अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।

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ग्रहण का विशेष संयोग: चंद्र और सूर्य ग्रहण कब और कहां?

सितंबर 2025 ज्योतिष और खगोल विज्ञान के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण महीना है, क्योंकि इस बार एक दुर्लभ चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का विशेष संयोग देखने को मिलेगा। देवघर के प्रतिष्ठित ज्योतिषाचार्य पंडित नंद किशोर मुद्गल के अनुसार, इस माह में ग्रह-नक्षत्रों की चाल कुछ विशेष संकेत दे रही है। खास बात यह है कि चंद्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन और सूर्य ग्रहण अमावस्या के दिन लगने वाला है। चंद्र ग्रहण का प्रभाव विशिष्ट रूप से भारत समेत पूरे क्षेत्र पर रहेगा, जिससे इसकी महत्ता और भी व्यापक हो जाती है। यह खगोलीय घटना न केवल धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से, बल्कि सामान्य जीवन पर भी गहरा प्रभाव डालने वाली है।

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सितंबर 2025 के प्रमुख व्रत और पर्व

सितंबर में कई महत्त्वपूर्ण व्रत और उत्सवों का श्रृंगार होता है, जो जीवन में शुभता और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करते हैं। देवघर के ज्योतिषाचार्य के अनुसार, इस माह की शुरुआत 3 सितंबर को महान परिवर्तनी एकादशी से होगी, जिसे अत्यंत पुण्य और शुभ माना जाता है। इसके बाद 4 सितंबर को भगवान वामन की जयंती मनाई जाएगी, जो विष्णु भगवान के अवतारों में से एक हैं।

  • 5 सितंबर को भाद्रपद माह का अंतिम प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इसी दिन ओणम त्योहार भी बड़े उल्लास के साथ मनाया जाएगा, खासतौर से दक्षिण भारत में। यह पर्व समृद्धि और खुशहाली का संदेश देता है।
  • ग्रह-नक्षत्रों के इस विशेष संयोग के कारण, सितंबर माह के ये ग्रहण और पर्व-त्योहार न केवल आध्यात्मिक बल्कि दैनिक जीवन पर भी गहरा प्रभाव डालने वाले हैं।
  • ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इन ग्रहणों के दौरान सावधानी विशेष आवश्यक है। इस समय शुभ कार्याें को टालना और संयम बनाये रखना उत्तम रहता है।

इस प्रकार, सितंबर में लगने वाले चंद्र और सूर्य ग्रहण एक दुर्लभ और महत्वपूर्ण खगोलीय संयोग हैं, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से आवश्यक होते हैं, बल्कि समाज और व्यक्ति के जीवन में भी इसका प्रभाव गहरा होता है। इस दौरान शांतिपूर्ण मन से पूजा, अर्चना और ध्यान करना अतिआवश्यक है।

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जितिया, महालया और नवरात्र: सितंबर के धार्मिक महत्व और पर्व

सितंबर का महीना आते ही पूरे देश में धार्मिक उमंग का संचार हो जाता है। यह महीना हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसमें कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं। इस वर्ष सितम्बर ग्रहों और नक्षत्रों की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहेगा। देवघर के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित नंद किशोर मुद्गल के मुताबिक, इस माह में दो प्रमुख ग्रहण लगेंगे – पूर्णिमा की रात चंद्र ग्रहण और अमावस्या की रात सूर्य ग्रहण। इन ग्रहणों का व्यापक प्रभाव भारत सहित अन्य क्षेत्रों में भी देखने को मिलेगा। इस तरह, यह महीना आध्यात्मिक दृढ़ता और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए शुभ समय माना जाता है।

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सितंबर के प्रमुख पर्व और तिथियां

सितंबर के शुरुआती दिनों में ही धार्मिक पर्वों का सिलसिला शुरू हो जाता है। इस वर्ष 3 सितंबर को परिवर्तनी एकादशी का व्रत रहेगा, जो व्रतियों के लिए विशेष पुण्यकारी माना जाता है। इसके बाद 4 सितंबर को भगवान वामनजी के जन्मोत्सव वामन जयंती मनाई जाएगी। 5 सितंबर को भाद्रपद मास का अंतिम प्रदोष व्रत रहेगा, जो संध्या पूजन के लिए महत्वपूर्ण है। इसी दिन पूरे भारत में उल्लास के साथ ओणम पर्व भी धूमधाम से मनाया जाता है। ये सभी तिथियां धर्म और संस्कृति में गहरे जुड़े हुए हैं तथा श्रद्वालुओं के लिए पर्व का महत्व दर्शाती हैं।

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जितिया व्रत का महत्व

जितिया व्रत विशेष रूप से संतान की लंबी आयु, स्वस्थ और सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाता है। यह व्रत बिहार, उत्तर प्रदेश व झारखंड के कई हिस्सों में अत्यंत श्रद्धा एवं भक्तिभाव से आयोजित किया जाता है। महिलाएं इस व्रत में निर्जल रहकर अपने बच्चों के लिए समर्पण भाव प्रकट करती हैं। यह पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पड़ता है और इसके साथ ही पितृपक्ष का भी समापन होता है। जितिया व्रत माताओं की ममता और श्रद्धा का प्रतीक है, जो मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी समाज को जोड़ता है।

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महालया और नवरात्र का आरंभ

सितंबर के अंतिम दिनों में महालया का पावन पर्व आता है जो माँ दुर्गा के आगमन का संदेश लेकर आता है। यह दिन पितृपक्ष का अंतिम दिवस होने के साथ-साथ शारदीय नवरात्र की भी शुरुआत करता है। नवरात्र के नौ दिनों तक माता दुर्गा के नौ रूपों की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यह पर्व शक्ति, भक्ति और सशक्तिकरण का प्रतीक होता है जो अंधकार और बुराई पर उजाले और अच्छाई की विजय का संदेश देता है। इस दौरान मंदिरों तथा घरों में भव्य धार्मिक आयोजन और अनुष्ठान होते हैं, जो समाज और परिवारों में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करते हैं।

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ग्रहण का प्रभाव

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, सितंबर माह में दो महत्वपूर्ण ग्रहण लगेंगे – पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण और अमावस्या को सूर्य ग्रहण। ग्रहण काल को सूतक मान कर व्रत एवं धार्मिक नियमों का पालन किया जाता है। ग्रहणों का प्रभाव विभिन्न राशियों पर अलग-अलग पड़ता है और इसके दौरान गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। ग्रहण के बाद दान-पुण्य तथा धार्मिक अनुष्ठान करने से फलदायिता बढ़ती है। यह समय आध्यात्मिक शुद्धि और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति का भी अवसर माना जाता है।

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सितंबर के Amazing पर्वों, जैसे जितिया, पितृपक्ष और एकादशी की जानकारी के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! हमें उम्मीद है कि आपको सितंबर ग्रहण तिथियां और इस माह के धार्मिक महत्व के बारे में पढ़कर अच्छा लगा होगा। ऐसे ही ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए बने रहें!

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