ज्येष्ठा-कनिष्ठा गौरी का आगमन महाराष्ट्रीयन घरों में एक बेहद ही खास और मंत्रमुग्ध कर देने वाला अवसर होता है। भाद्रपद शुक्ल अष्टमी का दिन जब यह पवित्र उत्सव मनाया जाता है, तो मानो पूरे माहौल में एक नया प्रेम और भक्ति का संचार हो जाता है। इस दिन ज्येष्ठा-कनिष्ठा गौरी की पवित्र स्थापना के साथ ही घर की सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है, जो परिवार के लिए सौभाग्य और सुख-समृद्धि लेकर आता है। मुझे लगता है कि इस उत्सव की खासियत सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों में ही नहीं, बल्कि उन छोटे, दिल से जुड़े पलों में भी है, जब महिलाएं हल्दी-कुमकुम का आयोजन करती हैं और अपने रिश्तों की गर्माहट को महसूस करती हैं। यह न केवल देवी के प्रति सम्मान प्रकट करने का तरीका है, बल्कि एक-दूसरे के लिए शुभकामनाओं का आदान-प्रदान भी है। इसके साथ ही, घर के हर कोने को देवी के आशीर्वाद से पवित्र करने की परंपरा एक सुंदर प्रतीक है कि हम अपने जीवन में शांति और खुशहाली चाहते हैं। क्या आपको नहीं लगता कि इस तरह के त्यौहारों में छिपा वह स्नेह और आत्मीयता हमारे जीवन को कितना खास बना देता है? जब नवमी तिथि पर 16 प्रकार के व्यंजनों का भोग और महापूजा होती है, तो उत्पन्न होने वाला वह उल्लास और भावुकता शब्दों में बयां नहीं की जा सकती। फिर विदाई का वह क्षण, जिसमें अगले साल फिर मिलने का वादा छिपा होता है, तो दिल में एक मीठा सा उदासपन भी महसूस होता है। इस पूरे उत्सव में जो गहराई और आत्मीयता है, वह हर किसी के दिल को छू जाती है। तो चलिए, इस अद्भुत ज्येष्ठा-कनिष्ठा गौरी के आगमन की इस यात्रा में खुद को खो देते हैं और इस त्यौहार की रसमों और भावनाओं का आनंद लेते हैं।
Table of Contents
- भाद्रपद शुक्ल अष्टमी: ज्येष्ठा-कनिष्ठा गौरी का आगमन और घर का अवलोकन
- नवमी तिथि: महापूजा, 16 व्यंजनों का भोग और विदाई
भाद्रपद शुक्ल अष्टमी: ज्येष्ठा-कनिष्ठा गौरी का आगमन और घर का अवलोकन
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ज्येष्ठा-कनिष्ठा गौरी के आगमन का विशेष महत्व होता है। गोयल विहार की निवासी रेखा कुडाणेकर जी के अनुसार, इस अवसर पर अनुराधा नक्षत्र के शुभ मुहूर्त में गौरी की स्थापना की जाती है। स्थापना के पहले गौरी को पूरे घर में घुमाकर गृह अवलोकन किया जाता है, जिससे घर के हर कोने में देवी की पवित्रता व्याप्त हो जाती है। यह परंपरा घर में सकारात्मक ऊर्जा और देवी के आशीर्वाद का प्रतीक समझी जाती है। साथ ही, शाम को महिलाओं के लिए हल्दी-कुमकुम का आयोजन होता है, जिसमें प्रसाद वितरण भी किया जाता है। यह आयोजन पारस्परिक प्रेम और सौहार्द को बढ़ावा देने का एक स्नेहिल अवसर होता है।
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स्थापना और गृह अवलोकन
इस वर्ष भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के शुभ दिन, अनुराधा नक्षत्र के विशेष मुहूर्त में ज्येष्ठा-कनिष्ठा गौरी की पावन स्थापना की जाएगी। स्थापना से पहले देवी को घर के प्रत्येक भाग में घुमाकर घर का अवलोकन करवाया जाता है। इस धार्मिक प्रथा का उद्देश्य घर के हर कोने को देवी के पवित्र स्पर्श से शुद्ध करना है। माना जाता है कि इससे घर में सुख-समृद्धि, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है, जो परिवार के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
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महिलाओं का हल्दी-कुमकुम और प्रसाद वितरण
गौरी स्थापना के बाद उसी शाम महिलाओं के लिए हल्दी-कुमकुम का आयोजन किया जाता है। यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक मेल का अवसर भी है। इस उत्सव में महिलाएं एक-दूसरे को हल्दी-कुमकुम लगाती हैं और शुभकामनाएं देती हैं, जिससे आपसी प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है। इस अवसर पर प्रसाद वितरण भी किया जाता है, जो इस उत्सव की मिठास और बढ़ा देता है तथा हर दिल को एक साथ जोड़ता है।
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दूसरे दिन नवमी तिथि का महापूजा और भोग
अष्टमी के अगले दिन, नवमी तिथि को ज्येष्ठा-कनिष्ठा गौरी की महापूजा का आयोजन होता है। इस दिन देवी की सेवा में 16 प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों का महाभोग अर्पित किया जाता है। पूरन युक्त थाली सजाकर विशेष आरती की जाती है, जो देवी के प्रति गहरी श्रद्धा और कृतज्ञता प्रकट करती है। यह महापूजा देवी की उपस्थिति और कृपा का अनुभव करने का पवित्र अवसर होता है।
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तीसरे दिन विदाई और दही-चावल का भोग
उत्सव के तीसरे दिन, जो कि नवमी तिथि के ही दिन होता है, गौरी देवी को दही-चावल का भोग लगाया जाता है और फिर देवी की विदाई की जाती है। यह विदाई समारोह देवी के प्रति सम्मान व्यक्त करता है तथा अगले वर्ष फिर से देवी के आगमन का आमंत्रण भी होता है। यह भावुक पल घर में सौहार्द और पारिवारिक प्रेम को और मजबूत बनाता है।
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नवमी तिथि: महापूजा, 16 व्यंजनों का भोग और विदाई
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को अनुराधा नक्षत्र के शुभ मुहूर्त में देवी गौरी की स्थापना की जाती है। गोयल विहार की निवासी रेखा कुडाणेकर के अनुसार, स्थापना के बाद गौरी की मूर्ति को पूरे घर में घुमाकर घर के प्रत्येक हिस्से का दर्शन कराया जाता है। यह पारंपरिक रीति-रिवाज देवी को घर की हर कोने से परिचित कराने का प्रतीक है। शाम को महिलाओं के लिए हल्दी-कुमकुम का आयोजन होता है, जिसमें वे प्रसाद ग्रहण करती हैं। यह कार्यक्रम महिलाओं को एक साथ मिलन का आनंद लेने और उत्सव में सामंजस्य बढ़ाने का विशेष अवसर प्रदान करता है।
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महापूजा और 16 व्यंजनों का भोग
नवमी तिथि के दूसरे दिन विशेष महापूजा का आयोजन किया जाता है। इस पूजा के अंतर्गत देवी गौरी को 16 प्रकार के विविध और पारंपरिक व्यंजनों का भव्य भोग अर्पित किया जाता है। इस खास भोग का उद्देश्य देवी को प्रसन्न करना और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना होता है। भोग के बाद पूरन की थाली सजाकर आरती की जाती है, जो भगवती के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का महत्वपूर्ण अवसर है। इस प्रकार का भोग और पूजा पारिवारिक सौहार्द और आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है।
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देवी गौरी की विदाई
नवमी तिथि के तीसरे दिन, देवी गौरी की विदाई का विधिवत आयोजन होता है। इस दिन देवी को दही-चावल का भोग अर्पित कर उनका सम्मानपूर्वक विदाई किया जाता है। यह कार्यक्रम देवी को अगले वर्ष पुनः आने का निमंत्रण देने के साथ-साथ उनके आगमन और संरक्षण के लिए आभार व्यक्त करने का प्रतीक है। इस तीन दिवसीय उत्सव में गौरी की स्थापना, महापूजा, भोग, और अंत में उनकी विदाई सम्मिलित होती है, जो परिवार में सौभाग्य, समृद्धि और सुखशांति का संचार करते हैं।
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महाराष्ट्रीयन घरों में ज्येष्ठा-कनिष्ठा गौरी का आगमन वाकई बहुत खास होता है! भाद्रपद शुक्ल अष्टमी पर घर का अवलोकन और महिलाओं के हल्दी-कुमकुम का यह उत्सव, परंपरा और स्नेह का एक अद्भुत संगम है। हमें उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी।
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