डोल ग्यारस 2025: जानें पौराणिक कथा और महत्ता (Amazing Guide)

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डोल ग्यारस 2025 का पर्व हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की ग्यारस को मनाया जाता है, जो भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं और उनकी दिव्यता का उत्सव है। इस खास दिन को ‘इन्दिरा एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है, और यह भक्ति, प्रेम, और रंगों का अद्भुत मेल प्रस्तुत करता है। 9 सितंबर 2025 को पड़ने वाला यह त्योहार भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम कथाओं से जुड़ा हुआ है, जो वृंदावन की पवित्रता और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। डोल ग्यारस की पौराणिक कथा हमें कृष्ण लीला की सुंदर झांकियों और रंगीन उत्सवों की याद दिलाती है, जिसमें भक्त प्रेम और समर्पण के साथ भाग लेते हैं। इस अवसर पर झांकियों को फूलों और वस्त्रों से सजाकर, भक्तगण नाच-गाने के साथ कृष्ण की भव्य झांकियों को लेकर उत्सव मनाते हैं। डोल ग्यारस न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह प्रेम, भक्ति और उत्साह की भावना को भी जागृत करता है। यह त्योहार हमें जीवन के रंगों और खुशियों को अपनाने की प्रेरणा देता है। इसके साथ ही, इन्दिरा एकादशी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व भी इस आयोजन की गरिमा को बढ़ाता है। डोल ग्यारस 2025 में कृष्ण लीला के रस का अनुभव करने के लिए हर दिल बेचैनी से तैयार है। आइए, इस रंगीन और भावपूर्ण उत्सव के गहरे अर्थ में डूबी इस पौराणिक कथा और महत्ता के सफर पर चलें।

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डोल ग्यारस 2025: भाद्रपद शुक्ल पक्ष की ग्यारस और कृष्ण लीला का संगम

डोल ग्यारस, जिसे ‘इन्दिरा एकादशी’ भी कहा जाता है, हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को बड़े ही भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह पावन पर्व 9 सितंबर 2025 को पड़ रहा है। यह त्योहार खासतौर पर भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं और उनके दिव्य रूप के प्रति गहरे प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन भक्तजन भगवान कृष्ण की सुंदर झांकियां सजाते हैं, जिन्हें रंग-बिरंगे फूलों और वस्त्रों से खूबसूरती से सजाया जाता है, जो होली के रंगों की याद दिलाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, डोल ग्यारस के दिन भगवान कृष्ण ने अपनी प्रियतमा राधा के साथ वृंदावन की महिमा का वर्णन किया था। यह पर्व सिर्फ भक्ति का उत्सव नहीं, बल्कि प्रेम, आनंद और उल्लास का भी झलक है, जिसे आज भी बड़े उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता है।

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डोल ग्यारस के दिन भगवान कृष्ण की झांकियां यानी ‘डोल’ इस त्योहार का सबसे बड़ा आकर्षण होती हैं। ये डोल फूलों और रंगीन वस्त्रों से सजाकर भक्त अपने कंधों पर लेकर नृत्य एवं भक्ति के साथ जुलूस निकालते हैं, जो एक मनमोहक और दिव्य दृश्य प्रस्तुत करता है। मंदिरों में इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जहां श्रद्धालु भगवान को माखन, मिश्री और विभिन्न फल-मेवों का भोग लगाते हैं। कई स्थानों पर भजन-कीर्तन का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें भक्तगण प्रभु की महिमा का दर्शनीय स्तवन करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन भगवान कृष्ण ने अपनी बाल लीलाओं से गोपियों का हृदय जीत लिया था और वृंदावन की पावन भूमि को और भी दिव्य बनाया था। यह पर्व भगवान के प्रति अपार श्रद्धा और प्रेम की अनुभूति कराता है।

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डोल ग्यारस का पर्व हमें जीवन में रंगों और खुशियों के महत्व का भी संदेश देता है। जिस प्रकार भगवान कृष्ण की झांकियों को रंगीन फूलों और वस्त्रों से सजाया जाता है, उसी तरह यह त्योहार हमारे जीवन में आनंद और उत्साह भरने की प्रेरणा देता है। भाद्रपद मास की यह शुक्ल पक्ष की ग्यारस तिथि, जो स्वयं में एक पवित्र एकादशी के रूप में मानी जाती है, भक्तों को आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से जोड़ती है। डोल ग्यारस यह सिखाता है कि भक्ति केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह उत्सव और आनंद का भी रूप है। यह दिन परिवार और मित्रों के साथ मिल-जुलकर मनाने की परंपरा को प्रोत्साहित करता है, जिससे आपसी प्रेम और सद्भावना में वृद्धि होती है।

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डोल ग्यारस की पौराणिक कथा: कृष्ण, राधा और वृंदावन की महिमा

डोल ग्यारस, जिसे डोल एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, एक खास धार्मिक त्योहार है जिसकी नींव भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं और उनकी दिव्य प्रेम कथा से जुड़ी हुई है। यह उत्सव हर वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को अत्यंत धूमधाम और भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्तजन भगवान कृष्ण के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और प्रेम को रंगों के त्योहार के माध्यम से व्यक्त करते हैं और कान्हा की मनभावन झांकियों की शोभा बढ़ाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, डोल ग्यारस के दिन ही भगवान कृष्ण ने राधा और वृंदावन की पावन महिमा को प्रकट किया था, जिससे यह पर्व प्रेम, भक्ति और आध्यात्मिक आनंद का अनोखा प्रतीक बन गया। आज भी आधुनिक युग में यह परंपरागत उल्लास और गहन भक्ति के साथ मनाया जाता है, जो हमें कृष्ण और राधा के अमर प्रेम की याद दिलाता है। यह विशेष दिन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक मेलजोल और सामुदायिक भावना को भी बढ़ावा देता है, जहाँ लोग मिल-जुल कर खुशियाँ मनाते हैं और ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

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डोल ग्यारस का महत्व: प्रेम, भक्ति और रंगों का उत्सव

डोल ग्यारस, जिसे डोल एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को बड़े श्रद्धा और मनोयोग के साथ मनाया जाता है। यह पर्व खास तौर पर भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं और उनके दिव्य प्रेम-भक्ति से गहरा संबंध रखता है। ऐसा विश्वास है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने राधा संग वृंदावन की अद्वितीय और पावन महिमा का प्रदर्शन किया था, जो इस त्योहार को प्रेम और भक्ति का प्रतीक बनाता है।

आज भी डोल ग्यारस को वही पावन भावना लिए मनाया जाता है, जब भक्तजन भगवान कृष्ण की झांकियाँ सजाते हैं और प्रेम-भक्ति एवं रंग-बिरंगे उत्सव में पूरी श्रद्धा से हिस्सा लेते हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्त्व रखता है, बल्कि सामाजिक रूप से भी लोगों को एक साथ लाता है, जहाँ पारंपरिक गीत, नृत्य एवं आनंदमय कार्यक्रमों के माध्यम से मिलजुल कर उत्सव मनाया जाता है।

डोल ग्यारस का धार्मिक महत्व भी बहुत बड़ा है, क्योंकि यह हम सबको भगवान कृष्ण के जीवन की मधुर और अमूल्य यादों से जोड़ता है। इस दिन मंदिरों की शोभा बढ़ाई जाती है और भगवान कृष्ण के प्रतिमाओं को खूबसूरती से सजाकर पालकी या डोल में विराजित कर जुलूस निकाला जाता है। भक्त इस जुलूस में भजन-कीर्तन के साथ अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं और इस पवित्र पर्व को हर्षोल्लास से मनाते हैं।

यह त्योहार प्रेम, भक्ति और रंगों का अद्भुत संगम है, जो हमारे जीवन में खुशहाली, आनंद और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। डोल ग्यारस हमारे सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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Dhol Gyaras Celebration

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यह जानकर खुशी हुई कि आपने डोल ग्यारस 2025 के बारे में पढ़ा! उम्मीद है, आपको भगवान कृष्ण की पौराणिक कथा और इस खास दिन की महत्ता को समझने में मज़ा आया होगा। यह पर्व वाकई भक्ति और आनंद का एक अनूठा संगम है। आपकी रुचि के लिए हम आभारी हैं!

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