सुप्रीम कोर्ट ने धर्म परिवर्तन से जुड़े संशोधित कानून के खिलाफ दायर याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा ।।

परिचय
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में उत्तर प्रदेश (यूपी) सरकार से धर्मांतरण संबंधी संशोधित कानून के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब मांगा है। इस कानूनी घटनाक्रम ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, संवैधानिक अधिकारों की व्याख्या और व्यक्तिगत आस्था संबंधी निर्णयों में राज्य के हस्तक्षेप के दायरे पर बहस को फिर से छेड़ दिया है।
पृष्ठभूमि: संशोधित उत्तर प्रदेश कानून
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम में 2024 में संशोधन किया गया था। इस कानून का उद्देश्य धर्मांतरण को विनियमित करना है, और कथित तौर पर बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन के माध्यम से किए गए धर्मांतरण पर रोक लगाना है। हालाँकि, विभिन्न समूहों और व्यक्तियों का तर्क है कि कानून की कुछ धाराएँ अत्यधिक व्यापक और अस्पष्ट हैं, जो प्रमुख संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकती हैं, जैसे:
– **वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19)**
– **कानून के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14)**
– **व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21)**
– **धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25)**
याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि अधिनियम की अस्पष्ट परिभाषाएँ और प्रक्रियाएँ नागरिकों के लिए यह समझना मुश्किल बनाती हैं कि कानूनी रूप से अपराध क्या है, जिससे अंतरधार्मिक जोड़ों और अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों के खिलाफ दुरुपयोग का खतरा है।
सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही
16 जुलाई, 2025 को, मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार तथा न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ के नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय ने संशोधित उत्तर प्रदेश कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की। सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कुछ विशिष्ट चिंताओं पर प्रकाश डाला:
– **स्पष्टता का अभाव:** अधिनियम की धारा 2 और 3 को इतना व्यापक बताया गया है कि वे स्वैच्छिक, वास्तविक धर्मांतरण को अपराध घोषित कर सकते हैं।
– **दुरुपयोग की संभावना:** याचिकाकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में ऐसे कई उदाहरणों का हवाला दिया जहाँ कथित तौर पर इसी तरह के कानूनों का दुरुपयोग व्यक्तियों, विशेष रूप से अंतरधार्मिक जोड़ों को परेशान करने के लिए किया गया है।
– **प्रक्रियात्मक बाधाएँ:** अधिनियम में धर्मांतरण के लिए पूर्व सूचना और प्रशासनिक अनुमोदन की आवश्यकता होती है, जो याचिका के अनुसार, स्वतंत्र रूप से अपना धर्म चुनने वाले व्यक्तियों की गोपनीयता और स्वायत्तता का उल्लंघन करता है।
सरकार का रुख
जवाब में, उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार ने कानून का बचाव करते हुए कहा है कि जबरन और धोखाधड़ी से धर्मांतरण को रोकना आवश्यक है। सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि दुरुपयोग के कोई सिद्ध उदाहरण नहीं हैं, और कानून केवल अवैध गतिविधियों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
जारी कानूनी बहस
सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक संशोधित कानून पर अंतिम फैसला नहीं सुनाया है और न ही इस पर रोक लगाई है, लेकिन यूपी सरकार को अपना आधिकारिक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया है कि एक सुसंगत न्यायिक दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए कई अन्य राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानूनों के खिलाफ संबंधित याचिकाओं पर एक साथ विचार किया जाएगा। शीर्ष अदालत के समक्ष छह उच्च न्यायालयों में लंबित समान मामलों को एकीकृत करने के लिए स्थानांतरण याचिकाएँ भी हैं।
संवैधानिक चिंताएँ और जन प्रतिक्रियाएँ
मानवाधिकार संगठनों और कार्यकर्ताओं का तर्क है कि यह कानून, व्यवहार में, व्यक्तियों—विशेषकर महिलाओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों और अंतरधार्मिक जोड़ों—की स्वायत्तता का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह राज्य को धर्म से संबंधित निजी निर्णयों की जाँच करने का अधिकार देता है। आलोचकों का कहना है कि यह कानून संविधान द्वारा प्रदत्त धर्म चुनने के मौलिक अधिकार को चुनौती देता है, और वे न्यायालय से जनहित और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाने का आग्रह करते हैं।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश के संशोधित धर्मांतरण कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का विचार भारत के संवैधानिक न्यायशास्त्र के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। इस नतीजे के दूरगामी प्रभाव होने की संभावना है, न केवल उत्तर प्रदेश के लिए, बल्कि अन्य राज्यों के समान विधायी ढाँचों के लिए भी। चूँकि यह मामला सभी हितधारकों की विस्तृत दलीलों और प्रस्तुतियों का इंतज़ार कर रहा है, यह आधुनिक भारत में व्यक्तिगत अधिकारों और राज्य की निगरानी पर बहस के केंद्र में बना हुआ है।
याचिकाकर्ता ने संविधान के आधिकारिक संस्करण Legislative Department की वेबसाइट में इन मूल अधिकारों की व्याख्या उद्धृत की है ।
*यह ब्लॉग उत्तर प्रदेश के संशोधित धर्मांतरण-विरोधी कानून के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में चल रही वर्तमान कार्यवाही का एक तटस्थ और जानकारीपूर्ण अवलोकन प्रस्तुत करता है, जो नवीनतम सार्वजनिक रिपोर्टिंग और कानूनी दृष्टिकोणों पर आधारित है।*
Join our whatsapp channel: https://www.whatsapp.com/channel/0029VbBeknrKLaHrIKsU8V3O
Follow our Facebook page :
https://www.facebook.com/profile.php?id=61578503637765