गणेश चतुर्थी: कृष्ण जी पर लगा झूठा आरोप, जानें अद्भुत कथा

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गणेश चतुर्थी कृष्ण झूठा आरोप की ये अद्भुत कथा सुनकर मन में कई सवाल उठते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि कैसे भगवान कृष्ण पर एक झूठा आरोप लग सकता है? यह कहानी सिर्फ एक धार्मिक कथा ही नहीं बल्कि हमें सिखाती है कि किस तरह गलतफहमी और अफवाहें किसी भी व्यक्ति के सम्मान को ठेस पहुंचा सकती हैं। कृष्ण जी पर झूठा आरोप लगा था क्योंकि उन्होंने अनजाने में चतुर्थी का चांद देख लिया था, जो कि एक पौराणिक कथा के अनुसार विवाद का कारण बना। इस विवाद की पृष्ठभूमि में एक कीमती मणि की चोरी का आरोप था, जो सत्राजित नामक व्यक्ति के पास थी। इस कथा में न केवल कृष्ण जी की बुद्धिमत्ता देखने को मिलती है, बल्कि सत्य की जीत की भी मिसाल मिलती है। गणेश चतुर्थी कथा हमारे जीवन के कई पहलुओं को दर्शाती है, जिसमें सत्य की रक्षा और विश्वास की महत्ता प्रमुख हैं। आइए, इस दिलचस्प और प्रेरणादायक कथा के माध्यम से जानते हैं कि कैसे कृष्ण जी ने झूठे आरोपों का सामना किया और सत्य को विजयी बनाया।

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चतुर्थी के चांद का झूठा आरोप और कृष्ण जी की कथा

गणेश चतुर्थी का पावन त्योहार, जो 27 अगस्त से प्रारंभ होकर 6 सितंबर तक मनाया जाता है, केवल गणपति बप्पा के आगमन का उत्सव नहीं है, बल्कि यह अनेक पौराणिक कथाओं का भी प्रतीक है। इसी में से एक रोचक कथा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है, जिन्हें चतुर्थी के चांद को देखने के कारण एक झूठे आरोप का सामना करना पड़ा। यह कथा हमें यह संदेश देती है कि कभी-कभी एक छोटी सी भूल या गलतफहमी भी बड़े विवाद का रूप ले सकती है।

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श्रीकृष्ण पर लगा चोरी का झूठा आरोप

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने अनजाने में चतुर्थी के चांद को देखा था। वहीं, उस समय उन पर सत्राजित नामक यादव सरदार के कीमती मणि की चोरी का गलत आरोप लगा दिया गया। यह मणि विशेष थी क्योंकि सत्राजित रोजाना उससे आठ भार सोना प्राप्त करता था। जब श्रीकृष्ण को इस मणि के बारे में पता चला, तो उन्होंने हंसी-मजाक में सत्राजित से कहा कि वह मणि उन्हें दे दें। इस घटना ने एक झूठे संदेह और विवाद की शुरुआत कर दी।

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मणि का सत्राजित के भाई तक पहुँचना

उसके बाद, सत्राजित ने वह मणि अपने भाई प्रसेन को सौंप दी। एक दिन प्रसेन शिकार पर गया, जहां एक शेर ने उस पर हमला किया और उसे मार डाला। इस दुखद घटना के बाद, रीछों के राजा जामवंत ने उस शेर को मार गिराया और मणि उनके पास आ गई। जब प्रसेन लंबे समय तक घर नहीं लौटा, तो सत्राजित को संदेह हुआ कि कहीं श्रीकृष्ण मणि के लोभ में उसके भाई की हत्या तो नहीं कर दी। धीरे-धीरे इस संदेह ने पूरे नगर में अफवाहों का रूप ले लिया और श्रीकृष्ण पर चोरी का झूठा आरोप लग गया।

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कृष्ण जी का मणि वापस लाना

अपने ऊपर लगे झूठे आरोप को साबित करने के लिए, श्रीकृष्ण स्वयं प्रसेन की खोज में निकले। तलाश के दौरान उन्हें पता चला कि मणि जामवंत के पास है। जब श्रीकृष्ण मणि लेने जामवंत के पास पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि जामवंत की पुत्री उस मणि से खेल रही थी। इस तरह, श्रीकृष्ण ने केवल अपने ऊपर लगे झूठे आरोपों को धत्ता बताया ही नहीं, बल्कि मणि भी वापस प्राप्त की। यह कथा हमें यह सीख देती है कि सत्य की जीत अवश्य होती है, चाहे उसमें कितना भी समय क्यों न लगे।

Source: धार्मिक कहानी – Amar Ujala

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सत्राजित और मणि की कहानी: कैसे कृष्ण जी पर लगा झूठा आरोप


सत्राजित और मणि की कहानी: कैसे कृष्ण जी पर लगा आरोप?

यह अत्यंत रोचक कहानी उस समय की है जब भगवान श्रीकृष्ण पर चोरी का एक झूठा आरोप लगा था। इस घटना की शुरुआत एक अद्भुत चमत्कारी मणि से हुई, जिसमें कई अनोखी शक्तियाँ समाहित थीं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मणि रोजाना आठ भार सोना देने की क्षमता रखती थी। जब भगवान श्रीकृष्ण को इस अद्भुत मणि के बारे में पता चला, तो उन्होंने मज़ाकिया अंदाज में सत्राजित से कहा कि वे यह मणि उन्हें दे दें। इस प्रकार कृष्ण जी पर लगे झूठे आरोप की यह कहानी शुरू हुई।

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मणि का रहस्य और सत्राजित का भाई

इसके बाद सत्राजित ने वह मणि अपने भाई को दे दी। एक दिन जब उसका भाई जंगल में शिकार करने गया, तो एक शेर ने उस पर हमला किया और उसे मार डाला। कुछ समय बाद, रीछों के राजा जामवंत ने उस शेर को मार गिराया और उसी से वह मणि प्राप्त हुई। जब सत्राजित के भाई कई दिन तक वापस नहीं लौटे, तो सत्राजित को चिंता सताने लगी। उसे शंका हुई कि कहीं भगवान श्रीकृष्ण ने ही मणि पाने के लिए उसके भाई की हत्या नहीं करवा दी। धीरे-धीरे यह अफवाह पूरे नगर में फैल गई और भगवान कृष्ण पर चोरी का झूठा आरोप लगने लगा। इस कहानी में झूठे आरोप और अफवाहों का समाज में कैसे प्रभाव पड़ता है, यह भी उजागर होता है।

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कृष्ण जी की पहल और मणि की वापसी

जब यह झूठी अफवाह भगवान श्रीकृष्ण तक पहुँची, तो उन्होंने अपने भाई की खोज का दृढ़ निश्चय किया। इस दौरान उन्हें पता चला कि वह मणि वास्तव में जामवंत जी के पास है। जब कृष्ण जी मणि लेने जामवंत जी के पास पहुँचे, तो देखा कि जामवंत जी की पुत्री मणि के साथ खेल रही थी। कृष्ण जी ने विनम्रतापूर्वक मणि माँगी, पर जामवंत जी ने मना कर दिया। अंततः कृष्ण जी और जामवंत जी के बीच युद्ध हुआ, जहाँ कृष्ण जी ने विजय प्राप्त की। अपनी शक्ति और बुद्धिमत्ता से कृष्ण जी ने मणि वापस प्राप्त की और अपने ऊपर लगे झूठे आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया। इससे साबित होता है कि सच्चाई और न्याय हमेशा विजयी होते हैं।

यह घटना हमें यह महत्वपूर्ण शिक्षा प्रदान करती है कि बिना पूरी सच्चाई जाने किसी पर भी आरोप लगाना उचित नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी मेधा और समर्पण से न केवल मणि को वापस पाया, बल्कि अपने निर्दोष होने का प्रमाण भी प्रस्तुत किया।

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Source: धार्मिक कहानी – Amar Ujala


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जामवंत जी के पास कैसे पहुंची मणि और क्या हुआ आगे?

गणेश महोत्सव की खुशियों का आगाज 27 अगस्त से हो चुका है, जो 6 सितंबर तक धूमधाम से मनाया जाएगा। इस पावन अवसर पर हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी एक अद्भुत कथा, जो चतुर्थी के चांद से संबंधी है। हमारे धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने अनजाने में चतुर्थी का चांद देख लिया था, जिसके कारण उन्हें चोरी के झूठे आरोपों का सामना करना पड़ा। चलिए, विस्तार से जानते हैं इस प्रेरणादायक कथा को और मणि के जामवंत जी तक पहुंचने की रोचक कहानी को।

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मणि की खासियत और सत्राजित का लालच

यह मणि स्वाभाव में अत्यंत चमत्कारी थी, जो प्रतिदिन आठ भार सोना प्रदान करती थी। जब भगवान श्रीकृष्ण ने इस मणि के रहस्य के बारे में जाना, तो वे हँसते हुए सत्राजित से अनुरोध करने लगे कि वह यह मणि उन्हें सौंप दें। सत्राजित ने इधर-उधर सोचते हुए यह मणि अपने भाई को दे दी। किंतु एक दिन, जब उसका भाई शिकार पर गया, तो वहां एक शेर ने उसे मार डाला। इस मणि की महत्ता और लालच के कारण जन्मी यह घटना उसी समय एक बड़ी त्रासदी का रूप ले चुकी थी।

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जामवंत जी को मणि का मिलना

समय के साथ, रीछों के राजा जामवंत जी ने उस शेर का संहार कर दिया। इसी दौरान मणि जामवंत जी के पास पहुंच गई। जब कई दिनों तक सत्राजित का भाई लौटकर न आया, तो सत्राजित के मन में संदेह घर करने लगा कि यह मणि पाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उसके भाई को मार डाला है। यह झूठी अफवाह धीरे-धीरे पूरे नगर में फैल गई और विवादों को जन्म दिया।

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श्रीकृष्ण द्वारा मणि की खोज

जब भगवान श्रीकृष्ण को इस पूरे प्रकरण की जानकारी हुई, तो वे अपने भाई की खोज में निकल पड़े। इसी दौरान उन्हें पता चला कि वह मणि जामवंत जी के पास है। जब वे मणि लेने जामवंत जी के पास पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि जामवंत जी की पुत्री उसी मणि के साथ खेल रही है। इस प्रकार मणि की यह कथा और भगवान श्रीकृष्ण की खोज दोनों ही अत्यंत रोचक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

Source: कहानी – AajTak

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हमें उम्मीद है कि आपको कृष्ण जी पर लगे झूठे आरोप और चतुर्थी के चांद से जुड़ी यह गणेश चतुर्थी कथा पसंद आई होगी। यह कहानी हमें सिखाती है कि कैसे सच्चाई सामने आती है। इस अद्भुत कथा को अपने दोस्तों और परिवार के साथ साझा करें!

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